भारत में कोरोना वायरस के बीच टीबी के मामले भी बढ़ते दिखे हैं। जिसका अनुमान लगाया जा रहा था कि ऐसा कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से हो रहा है। हालांकि, स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह साफ किया कि टीबी के मामले कोविड-19 संक्रमण की वजह से बढ़ रहे हैं, इसके लिए पर्याप्त सबूत नहीं मिले हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा था कि टीबी के 65 फीसदी मामले 15 साल से 45 साल तक के लोगों में देखने को मिल रहे हैं। जो आर्थिक रूप से सबसे अधिक उत्पादक आबादी वाला वर्ग है। उन्होंने कहा कि टीबी के 58 प्रतिशत मामले ग्रामीण क्षेत्रों से हैं।
वहीं, युवा रीढ़ में टीबी के संक्रमण से ज़्यादा पीड़ित हो रहे हैं। एम्स के अध्ययन में यह बात सामने आई, रीढ़ में टीबी से पीड़ित हर दूसरा मरीज युवा देखा जा रहा है। डॉक्टरों ने 1600 से ज़्यादा मरीज़ों पर अध्ययन किया है। पीड़ितों में एक तिहाई मरीज़ 21 से 33 साल की उम्र के हैं। वहीं 17 फीसद मरीज़ों की उम्र 31 से 40 के बीच है। डॉक्टर्स का कहना है कि कमर और गर्दन के दर्द को नज़रअंदाज़ करना बड़ी भूल हो सकती है। चार सप्ताह से अधिक समय तक अगर कमर में दर्द है, तो यह रीढ़ में टीबी की बीमारी का संकेत हो सकता है।
स्पाइनल टीबी : रीढ़ की हड्डी में होने वाला टीबी इंटर वर्टिबल डिस्क में शुरू होता है, जिसके बाद रीढ़ की हड्डी में फैलता है। समय पर इलाज न किया जाए, तो अपाहिज भी हो सकते हैं। स्पाइन में टीबी के शिकार अक्सर युवा ही होते हैं। इसके लक्षण भी साधारण हैं, जिसके कारण अक्सर लोग इसे नज़रअंदाज करने की भूल करते हैं। इसके शुरुआती लक्षणों में कमर में दर्द रहना, बुखार, वज़न कम होना, कमजोरी या फिर उल्टी आदि हैं।
रीढ़ की हड्डी में टीबी क्यों होता है?
टीबी मुख्य रूप से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में सांस के द्वारा फैलता है। जब आप टीबी क कारण बनने वाले बैक्टीरिया (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस) के संपर्क में आते हैं, तो यह मुंह या सांस द्वारा नाक से होते हुऐ फेफड़ों तक पहुंच जाता है। कुछ मामलों में यह बैक्टीरिया फेफड़ों से लिम्फ नोड्स या हड्डियों तक भी फैल जाता है। रीढ़ की हड्डी में टीबी होना, बोन टीबी (हड्डी में टीबी) का एक प्रकार है। जब यह बैक्टीरिया फेफड़ों रीढ़ की हड्डी तक पहुंच जाता है और परिणामस्वरूप पोट रोग विकसित हो जाता है।
स्पाइन में टीबी के लक्षण
– पीठ/कमर में अकड़न आना
– स्पाइन के प्रभावित क्षेत्र में खासकर रात के समय असहनीय दर्द होना
– प्रभावित रीढ़ की हड्डी में झुकाव आना
– पैरों और हाथों में काफी ज़्यादा कमज़ोरी और सुन्नपन रहना
– हाथों और पैरों की मांसपेशियों में खिंचाव
– स्टूल, यूरीन पास करने में परेशानी होना
– सांस लेने में दिक्कत, उपचार को बीच में ही बिल्कुल नहीं छोड़ना चाहिए, जिससे पस की थैली फट सकती है।
टीबी से बचाव के तरीके
1. कमर में लंबे समय तक दर्द रहने पर डॉक्टर से समय पर जांच करवाएं, इसे टालें नहीं।
2. खांसी को दो हफ्ते से ज़्यादा हो जाएं, तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं। दवा का पूरा कोर्स लें।
3. मास्क पहनें या हर बार खांसने या छींकने से पहले मुंह को पेपर नैपकिन से ढकें।
4. बीमार होने पर इधर-उधर न थूकें बल्कि एक डिस्पोज़ेबल बैग का इस्तेमाल करें। जिससे इसे दूसरों में फैलने से रोका जा सके।
5. मरीज़ को ऐसे कमरे में रखें जहां वेंटीलेशन अच्छा हो। कोशिश करें कि एसी का इस्तेमाल न हो।
6. पोष्ण से भरपूर डाइट लेने के साथ रोज़ाना व्यायाम ज़रूर करें।
7. सिगरेट, बीड़ी, हुक्का, तंबाकू, शराब आदि से दूरी बनाएं।
8. भीड़-भाड़ या जिन जगहों पर गंदगी होती है वहां न जाएं।
9. बच्चे के जन्म पर BCG वैक्सीन ज़रूर लगवाएं।
10. टीबी की जांच के लिए सीबीसी ब्लड काउंट, एलीवेटेड राइथ्रोसाइट सेडिमैटेशन, ट्यूबक्र्युलिन स्किन टेस्ट के ज़रिए टीबी के संक्रमण का पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा रीढ़ की हड्डी का पहले एमआरआई, सीटी स्कैन और फिर बोन बॉयोप्सी जांच के जरिए भी टीबी के संक्रमण का पता लगाया जाता है।
पोट रोग की रोकथाम कैसे करें?
जैसा कि ऊपर बताया गया है, कि रीढ़ की हड्डी में विकसित होने वाला टीबी मुख्य रूप से फेफड़ों से ही फैलता है। टीबी होने से बचाव करना ही पोट रोग की रोकथाम करने का सबसे पहला तरीका हो सकता है। जिन लोगों में पीपीडी टेस्ट (Purified Protein Derivative) का रिजल्ट पॉजिटिव आया है, लेकिन उनको टीबी नहीं है तो वे उचित दवाओं की मदद से यह रोग विकसित होने से बचाव कर सकते हैं।
यदि आप किसी टीबी के मरीज के आसपास रहते हैं, तो डॉक्टर के द्वारा बताई गई सभी सावधानियों का पालन करें। टीबी बहुत ही तेजी से फैलता है, इसलिए मरीज व उसके साथ रहने वाले व्यक्तियों को डॉक्टर के द्वारा बताए गए नियमों का पालन करना बहुत जरूरी है।