साइटिका एक सामान्य, लेकिन बहुत ही गंभीर समस्या है। दरअसल, कमर से संबंधित नसों में से अगर किसी एक में भी सूजन आ जाए तो पूरे पैर में असहनीय दर्द होने लगता है, जिसे साइटिका कहा जाता है। 50 साल से अधिक उम्र के लोगों में यह समस्या आम है। इसके अलावा अधिक मेहनत करने वाले या भारी वजन उठाने वाले लोगों में भी यह समस्या अधिकतर देखने को मिलती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि साइटिका में पैरों में तेज झनझनाहट होती है और पैर के अंगूठे और अंगुलियां सुन्न हो जाती हैं। कभी-कभी तो ऐसा लगता है जैसे पैर बिल्कुल निर्जीव हो जाता है, यानी उसमें जान ही नहीं रहती। अगर यह समस्या लगातार बढ़ती रहे, तो यह शरीर के आंतरिक नसों पर भी बुरा प्रभाव डालना शुरू कर देती है। इसलिए साइटिका के लक्षणों को समय रहते पहचानने और सही इलाज कराने की जरूरत होती है, ताकि बीमारी गंभीर रूप न ले।
कैसा होता है साइटिका में होने वाला दर्द?
कुछ मौकोें पर यह दर्द इतना परेशान कर देने वाला हो जाता है कि व्यक्ति को किसी जगह से दोबारा उठने का मन नहीं करता। इस प्रकार का दर्द विभिन्न तरह से हो सकता है। यानि कि यह निरंतर रूप से आपको परेशान कर सकता है। या फिर ये समय – समय पर अपना प्रभाव डाल कर गायब हो जाता है। और कमर के मुकाबले साईटिका से पीड़ित होने वाले व्यक्ति को पैरों में ज़्यादा दर्द महसूस होता है। इस तरह का दर्द उठते समय या फिर ज़्यादा लंबे समय तक बैठने की वजह से बैचेन कर सकता है। कभी-कभी तो इसका प्रभाव छींकते या खांसते वक्त भी देखने को मिलता है।
साइटिका के लक्षण (Symptoms of Siatica)
यह रोग अधिक मेहनत करने वाले या भारी वजन उठाने वाले व्यक्तियों में होता है। आमतौर पर यह समस्या 50 वर्ष की उम्र के बाद ही देखी जाती है। व्यक्ति के शरीर में जहाँ-जहाँ भी हड्डियों का जोड़ होता है, वहां एक चिकनी सतह होती है जो हड्डियों को जोड़े रखती है, उम्र बढ़ने के साथ यह चिकनी सतह घिसने लगती है तब हड्डियों पर इसका बुरा असर होता है जिसके कारण असहनीय दर्द होता है।
जब यह कड़ी हो जाती है तो आपकी साइटिका नर्व पर दबाव पड़ता है जिससे साइटिका हो जाता है। लम्बे समय तक बैठे रहने से, गिरने से या किसी दुर्घटना के कारण गंभीर पिरिफॉर्मिस सिंड्रोम (Piriformis syndrome) हो सकता है।
साइटिका के कारण
कई ऐसी चिकित्सा-संबंधी परिस्थतियां हैं जिनकी वजह से साईटिका को बढ़ावा मिलता है।
1. हर्नियेटेड डिस्क (Herniated Disc)
इसे आमतौर पर स्लिप डिस्क भी कहा जाता है। हमारी स्पाइनल काॅलम में उपस्थित हड्डियों के मध्य एक मुलायम चीज़ पाई जाती है जिसे डिस्क के नाम से जाना जाता है। ये हमारे लिए कई तरह से महत्त्वपूर्ण मानी जाती हैं। जैसे कि चलते वक्त, कुछ सामना उठाते समय ये हड्डियों को आपस में टकराने से रोकने का काम करती हैं। साथ ही हड्डियों को किसी प्रकार के दबाव या झटके से सुरक्षा करती हैं।
हमारी रीढ़ में उपस्थित डिस्क में दो भाग होते है जिसमें भीतरी हिस्सा नरम और बाहरी हिस्सा (outer ring) कठोर होता है। कुछ कारणों के तहत भीतरी हिस्सा बाहरी हिस्सा से बाहर निकल जाता है जिसे स्लिप डिस्क के नाम से पहचाना जाता है। साईटिका के कारणों में एक प्रमुख कारण हर्नियेटेड डिस्क या स्लिप डिस्क को माना जाता है।
2. स्पाइनल स्टेनोसिस (Spinal Stenosis)
जब स्पाइनल केनाल सकड़ी होने लगती है, उस स्थिति को स्पाइनल स्टेनोसिस कहा जाता है। इस तरह की अवस्था में रीढ़ की हड्डी पर दबाव पड़ता है। स्पाइनल स्टेनोसिस साईटिका का कारण होने के साथ-साथ रीढ़ की एक गंभीर बीमारी भी मानी जाती है। आमतौर पर इस तरह की परेशानी बढ़ती उम्र वाले लोग महसूस करते हैं।
3. स्पोन्डिलोलिस्थेसिस (Spondylolisthesis)
यह रीढ़ की हड्डी से जुड़ी ऐसी स्थिति है जिससे कमर में दर्द की शिकायत आती है। यह तब उत्पन्न होती है जब कोई एक कशेरूका (vertebrae) जो कि पीठ की हड्डी है, अपनी जगह से खिसक कर उसके नीचे वाली कशेरूका पर चली जाती है। इसकी वजह से साईटिका के होने की संभावना बढ़ जाती है।
4. मांसपेशियों में ऐंठन (Muscles Spasm)
इस तरह की परिस्थति में एक या अधिक मांसपेशियों में अचानक जकड़न महसूस होती है। इसके द्वारा होने वाला दर्द परेशान कर देने वाला और गंभीर माना जाता है। मांसपेशियों में जकड़न भी साईटिका का कारण बन सकता है। साईटिक नर्व मांसपेशियों से गुज़रती है और इस तरह की एंेठन उसे दबा सकती है।
5. डीजनरेटिव डिस्क डिजी़ज़ (Degenerative Disc Disease)
यह आमतौर पर उम्र के साथ होने वाली एक प्राकृतिक अवस्था है। इसमें स्पाइनल काॅलम की कशेरूका में पाए जाने वाली एक या अत्यधिक डिस्क बिगड़ जाती हैं। इस स्थिति के कारण दर्द होने लगता है। इस परेशानी को पीठ के निचले हिस्से में दर्द होने के प्रमुख कारणों में से एक माना जाता है। अगर डीजनरेटिव डिस्क डिजी़ज़ के कारण पीठ के निचले हिस्से की नसों में जलन होती है, तो इस कारण साईटिका का दर्द हो सकता है।
6. स्पाइनल ट्यूमर (Spinal Tumor)
स्पाइनल ट्यूमर उस स्थिति को कहते हैं कि जब स्पाइनज काॅलम या स्पाइनल कोर्ड के इर्द-गिर्द या भीतर के टिशू की असामान्य वृद्धि होने लगती है। ये कैंसर के साथ या उसकी अनुपस्थिति में भी हो सकते हैं। दोनों ही परिस्थतियां साईटिका का कारण बन सकती हैं खासतौर से जब ये साईटिक नर्व या फिर पीठ के निचले हिस्से में हों।
7. ट्रोमा (Trauma)
कई बार वाहन की भिड़ंत, कुछ खेल-संबंधी गतिविधि या गिरने के कारण भी साईटिका का दर्द महसूस हो सकता है। इस तरह की परिस्थतियों के कारण नर्व को नुकसान पहंुच सकता है या फिर टूटी हुई हड्डी उस पर दबाव डाल सकती है।
इन बातों का पूर्ण रूप से ध्यान रखें। साथ ही साथ अपनी सेहत पर भी गौर करें। मेडिकल चिकित्सा से जुड़ी सुविधाओं के लिए मेवाड़ हास्पीटल से संपर्क करें।
साइटिका का ईलाज
कई ऐसे मौके होते हैं जिसमें साईटिका से पीड़ित होने वाला व्यक्ति बिना डाॅक्टर की सहायता लिए कुछ नुस्खों के माध्यम से ठीक हो जाता है। फिर भी कई ऐसे लोग हैं जिनका दर्द बरकरार रहता है और उन्हें डाॅक्टर से सलाह लेना ज़रूरी हो जाता है। आप पोलेरिस न्यूरोसइंसेस हॉस्पिटल, आगरा के डाॅक्टर्स से बात कर सकते हैं जो प्रारंभिक समय में कुछ दवाईयों के सेवन की सलाह दे सकते हैं।
कुछ मौकों में व्यायाम की भी सलाह दी जा सकती है। खासतौर से वे जिनके माध्यम से पाॅस्चर में सुधार और फ्लेक्सिबिलिटी बढ़ती हो। कभी कभी साईटिका का प्रभाव ज़्यादा बढ़ने पर स्टेरोइड इंजेक्शन की सहायता भी लेनी पड़ती है। ये नसों के इर्द-गिर्द सूजन को कम करती है जिससे दर्द में आराम मिलता है। लेकिन इसका असर कुछ महीनों तक ही रहता है।
सर्जरी
साईटिका का ईलाज सर्जरी के माध्यम से भी हो सकता है। ये उन मौकोें पर काम आती है जब मरीज़ को दर्द में आराम नहीं मिलता, उसे कमज़ोरी होने लगती है या फिर उसका मूत्राशय पर नियंत्रण नहीं रहता। सर्जरी के दौरान डाॅक्टर बाॅन स्पर या फिर हर्निएटेड डिस्क को निकाल देते हैं जिसके कारण नसों पर दबाव होने की वजह से दर्द महसूस हो रहा हो। सर्जरी के बारे में पूर्ण रूप से जानकारी प्राप्त करने के लिए आप पोलेरिस न्यूरोसइंसेस हॉस्पिटल, आगरा के वरिष्ठ सर्जन डॉक्टर सौरभ शर्मा से बात कर सकते हैं।